इस प्राचीन शिव मंदिर में नहीं रुकता कोई रात, टस से मस नहीं कर पाए थे शिवलिंग 

By: Gulab rohit

Jul 31, 20255:50 PM

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इस प्राचीन शिव मंदिर में नहीं रुकता कोई रात, टस से मस नहीं कर पाए थे शिवलिंग 


सागर। देवों के देव महादेव को आदि देव कहा जाता है। उनके हजारों मंदिरों की कहानियां भी वैसी ही रहस्यमई और अद्भुत हैं। सागर जिले की बीना तहसील से लगभग 40 किलोमीटर दूर, पिपरासर ग्राम पंचायत के सोनचर गांव में स्थित हजारिया महादेव मंदिर एक ऐसा ही आस्था और रहस्य का केंद्र है। यह मंदिर बेतवा नदी के संगम पर स्थित है और अपनी चमत्कारी मान्यताओं, खंडित शिवलिंग की कथा और शांत मगरमच्छों के कारण श्रद्धालुओं में विशेष आस्था का केंद्र बना हुआ है। सैकड़ों साल पुराने इस महादेव मंदिर से जुड़े कोई पुख्ता ऐतिहासिक दस्तावेज तो नहीं हैं, लेकिन इसके महत्व और चमत्कारों की कई किवदंतिया चर्चित हैं।

खंडित शिवलिंग जिसे कोई हिला न सका


इस मंदिर में एक प्राचीन शिवलिंग है जबकि उसके बगल की मंदिर में 2 शिवलिंग है, जिसमें से एक शिवलिंग खंडित है। स्थानीय लोगों के अनुसार, मुगल आक्रांता औरंगजेब ने इस शिवलिंग को खंडित किया था। हालांकि कुछ लोग शिवलिंग के खंडित होने की वजह आकाशीय बिजली गिरने को भी मानते हैं। गांव के बुजुर्ग दीपचंद गोस्वामी बताते हैं कि "करीब 15 साल पहले इस खंडित शिवलिंग को हटाकर नया शिवलिंग स्थापित करने की कोशिश की गई, लेकिन पुराना शिवलिंग टस से मस नहीं हुआ। जिसके बाद नए शिवलिंग को उसके बगल में ही स्थापित कर दिया गया।"

सिंधिया घराने से रहा है मंदिर का संबंध


हजारिया महादेव मंदिर का संबंध सिंधिया राजवंश से भी बताया जाता है। स्थानीय लोगों ने बताया कि सिंधिया परिवार ने बेतवा नदी के किनारे कई मंदिर बनवाए थे जिसमें से एक हजारिया महादेव मंदिर भी है। मंदिर के पुजारी बेनी प्रसाद दुबे के अनुसार, "उनके पूर्वजों को सिंधिया घराने से वेतन मिलता था। यह परंपरा लगभग 7 साल पहले बंद हो गई। मंदिर की सेवा अब मंदिर की लगभग 25 एकड़ जमीन के सहारे चल रही है। मंदिर की इस जमीन पर खेती होती है और उनसे जो आय होती है उसी से मंदिर के सारे आयोजन और सेवा भाव होता है।"


यहां के मगरमच्छ नहीं पहुंचाते किसी को नुकसान


बेतवा नदी के जिस घाट के किनारे ये मंदिर स्थित है, वहां मगरमच्छ भी निवास करते हैं। आमतौर पर मगरमच्छ बेहद आक्रामक स्वभाव के होते हैं, लेकिन स्थानीय लोगों के मुताबिक यहां आसपास निवास करने वाले मगरमच्छ बेहद शांत स्वभाव के हैं। ग्रामीण रिंकू गोस्वामी बताते हैं कि "यहां आज तक किसी भी मगरमच्छ ने किसी पर हमला नहीं किया है। जबकि जिस घाट पर श्रद्धालु स्नान करते हैं वहीं आसपास मगरमच्छ विचरण करते हैं, लेकिन वो किसी को किसी भी प्रकार का कोई नुकसान नहीं पहुंचाते।"
मंदिर से कोई भी सामान ले जाना अपशकुन माना जाता है
मान्यता है कि मंदिर परिसर में किसी भी वस्तु को उठाकर ले जाना अपशकुन माना जाता है। ग्रामीण बताते हैं कि जो लोग बेलपत्र या अन्य वस्तुएं मंदिर से साथ ले गए, उन्हें सपने में सांप दिखाई दिए या घर में सांप निकल आए। श्रद्धालु सुनील श्रीधर बताते हैं कि "एक बार एक युवक मंदिर परिसर से बेलपत्र अपने साथ ले गया था। घर पहुंचने के बाद उसकी तबीयत खराब हो गई और सुधार नहीं हो रहा था, लगातार उसकी हालत बिगड़ती जा रही थी। इसके बाद वो युवक वापस मंदिर आया और अपनी गलती मानी, इसके बाद उसके स्वास्थ्य में सुधार हो गया।"


रात में मंदिर में कोई नहीं रुकता


आपने कई मंदिरों में चोरी की घटनाओं के बारे में सुना होगा, लेकिन स्थानीय लोगों की माने तो यहां ऐसा नहीं होता। मंदिर परिसर में जो भी मंदिर बने हुए हैं उनमें कभी भी ताला नहीं लगाया जाता। रिंकू गोस्वामी बताते हैं कि "हजारिया महादेव मंदिर के अंदर रात में कोई भी व्यक्ति नहीं रुक सकता। पूर्वज बताते हैं कि कई सालों पहले एक महात्मा ने मंदिर में रात्रि विश्राम करने का प्रयास किया था, लेकिन रात में ही उन्हें अपने शरीर पर चिमटे से मार पड़ने का आभास हुआ। इसके बाद से यहां रात में कोई नहीं रुकता।"


भक्तों की उमड़ती है भारी भीड़, लेकिन उपेक्षा का शिकार


सावन माह के अलावा बसंत पंचमी और महाशिवरात्रि पर यहां हजारों की संख्या में शिव भक्त पहुंचते हैं। इसके अलावा जनवरी से मार्च के बीच यहां आयोजित होने वाले यज्ञ में भी क्षेत्र सहित दूर-दराज के इलाकों से श्रद्धालु आते हैं। शिव दर्शन के साथ ही अक्सर लोग यहां बेतवा नदी के संगम से उपजे प्राकृतिक सौंदर्य को देखने भी पहुंचते हैं। प्रकृति की गोद में स्थित इस दिव्य स्थल पर हजारों लोग पहुंचते हैं।
हालांकि इतना महत्वपूर्ण स्थल होने के बावजूद यहां तक पहुंचने के लिए सड़क नहीं है। ग्रामीणों का कहना है कि सरकार और पुरातत्व विभाग इस पर कोई ध्यान नहीं दे रहा है। उनका कहना है कि यदि यहां सड़क और पानी जैसे मूलभूत विकास कार्य भी करवा दिए जाएं तो यह गांव एक धार्मिक व पर्यटन क्षेत्र के रूप में विकसित हो जाएगा।

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